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Nehru Family Hate Hindu : ऐसा आखिर क्या कर दिया था अपने शासन में नेहरू परिवार ने कि छवि हिंदू विरोधी बन गयी ??

साल 2014 में जब कांग्रेस की सीटें पहली बार 100 से कम हो गई थी तो सोनिया गांधी ने विश्लेषण करने के लिए कमेटी बनाई थी। इस कमेटी के अध्यक्ष ए.के.एटनी थे।

हिंदू वोट बैंक के एकतरफा भारतीय जनता पार्टी के समर्थन में आ जाने की वजह भारतीय जनता पार्टी को पहली बार पूर्ण बहुमत मिला था। ए. के. एंटनी कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में पहली बार यह कहा था कि कांग्रेस की छवि हिंदू विरोधी पार्टी की बन गई है, इसी कारण कांग्रेस को जनता ने ठुकरा दिया है।

कांग्रेस को इस रिपोर्ट पर मंथन करके खुद की छवि सुधारने की प्रयास करनी चाहिए थी, लेकिन हुआ इसका उल्टा। कांग्रेस के महासचिव जनार्दन द्विवेदी को इसलिए किनारे कर दिया गया क्योंकि उसने कहा था कि नरेंद्र मोदी को रोकने में कांग्रेस असफल रही। जनार्दन द्विवेदी कांग्रेस में अंतिम हिंदूवादी चेहरा थे, जिन्होंने साल 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले ही हार की इबारत पढ़ ली थी।

जनार्दन द्विवेदी ने साल 2014 फरवरी में ही कह दिया था कि कांग्रेस को साल 2009 में सत्ता से अलग होकर दूसरों को सरकार बनाने देनी चाहिए थी। साल 2009 से 2014 की कांग्रेस की पारी उसके लिए बेहद नुकसानदायक साबित हुई। इस अवधि में एक तरफ जमकर भ्रष्टाचार हुए तो दूसरी तरफ अल्पसंख्यक तुष्टिकरण ने कांग्रेस की छवि हिंदू विरोधी और मुस्लिम पार्टी तक की बना दी थी। लोकसभा चुनाव के बाद राहुल गांधी का बयान भी इसकी पुष्टि करता था, जिसमें उन्होंने कहा था कि जो लोग मंदिर जाते हैं, वहीं महिलाओं से छेड़खानी करते हैं।

ए.के.एटनी की रिपोर्ट से सबक लेते हुए साल 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी ने हिंदू देवी देवताओं और मंदिरों के बारे में अपनी धारणा में बदलाव किया था। उन्होंने मंदिरों में जाकर हिंदू देवी देवताओं के दर्शन किए, जिससे कांग्रेस को फायदा भी हुआ। कांग्रेस की सीटें 61 से बढ़कर 77 हो गई और भारतीय जनता पार्टी की सीटें 115 से घटकर 99 रह गई।

राहुल गांधी का दोहरापन उस समय उजागर हो गया था, जब गुजरात विधानसभा चुनाव के ठीक बाद संगठन में बच्ची एकमात्र हिंदुओं की आवाज जनार्दन द्विवेदी को कांग्रेस महासचिव पद से हटा दिया गया। जनार्दन त्रिवेदी उन चार नेताओं में से एक थे जो सोनिया गांधी की अनुपस्थिति में पार्टी के फैसले लेने के लिए अधिकृत थे। अन्य तीन थे राहुल गांधी, अहमद पटेल और ए.के.एटनी।

अहमद पटेल का स्वर्गवास हो चुका है, ए.के. एंटनी और जनार्दन द्विवेदी सक्रिय राजनीति से संन्यास ले चुके हैं। और इन दोनों के बेटे भारतीय जनता पार्टी ज्वाइन कर चुके हैं। साल 2019 में जब मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर से 370 हटाई तो कांग्रेस के चार नेताओं जनार्दन द्विवेदी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, मिलिंद देवड़ा और दीपेंद्र हुड्डा ने सरकार के फैसले का समर्थन किया था, अब उनमें से सिर्फ हुड्डा ही कांग्रेस में बचे हैं।

2017 में सॉफ्ट हिंदू लाइन अपनाते हुए राहुल गांधी ने मंदिर दर्शन अभियान चलाया था। उन्होंने खुद को शिव भक्त घोषित किया, मानसरोवर यात्रा पर भी गए। पुष्कर जाकर ब्रह्मा की पूजा करते हुए खुद को ब्राह्मण और अपना गोत्र दत्तात्रेय बताया, जनेऊ भी धारण किया। लेकिन श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा का आमंत्रण ठुकरा करके नेहरू परिवार ने हिंदुओं को अच्छा सिग्नल नहीं दिया।

नेहरू परिवार यह नहीं समझ पाया कि श्री राम जन्मभूमि को वापस हासिल करने के लिए हिंदुओं ने लगभग 500 सालों में 76 बार संघर्ष किया, जिनमें से ज्यादातर जमीनी संघर्ष थे। लाखों राम भक्तों ने अपने बलिदान दिए, 70 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी, ढांचे के नीचे खुदाई में मंदिर के अवशेष मिले, तब जाकर हिंदुओं को अपनी पवित्र भूमि वापस मिली। नेहरू परिवार को श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह को बॉयकॉट करने से पहले हिंदुओं के पक्ष को सुनना चाहिए था। सारा देश इंतजार कर रहा था कि राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान 22 जनवरी को कुछ ऐसा करेंगे कि हिंदुओं की नाराजगी किसी हद तक दूर हो।

श्री राम जन्मभूमि मंदिर में रामलला की प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा के समय राहुल गांधी ने 15वीं शताब्दी के हिंदू संत शंकर देव के जन्म स्थान पर पूजा अर्चना का फैसला किया है। शंकरदेव वैष्णव धर्म के प्रचारक थे, उन्होंने दो बार संपूर्ण भारत की यात्रा करने के बाद एक शरण नाम धर्म की स्थापना की थी। वह मूर्ति पूजा के समर्थक नहीं थे, उन्होंने धुवा हात में भगवान जगन्नाथ की मूर्ति सिर्फ ब्राह्मणों के विरोध को शांत करने के लिए रखवाई थी।

शंकर देव के नव वैष्णव धर्म में श्री कृष्ण की भक्ति है, लेकिन मूर्ति पूजा श्री कृष्ण की भी नहीं थी। बाद में जब उनके साथ दामोदर देव शामिल हुए, तो श्री कृष्ण की मूर्ति स्थापना शुरू हुई। उनका कहना था की मूर्ति उजीकृत चैतन्य है , और भक्त भी चैतन्य के स्तर पर होता है। अगर कोई भक्त चैतन्य के स्तर नहीं होता तो उसमें मूर्ति पूजा का अनुसरण करने की भी उम्मीद नहीं की जाती। लेकिन शंकरदेव के शरण नाम धर्म में श्री कृष्ण के अलावा दूसरे देवी देवताओं की मूर्ति पूजा और चढ़ावा चढ़ाना पूरी तरह निषेध है।

जाति आधारित जनगणना करवा कर हिंदुओं को जातियों में बांटने का राहुल गांधी का अभियान तो चल ही रहा है, अब उन्होंने हिंदू समाज को मूर्ति पूजको और मूर्ति पूजा विरोधियों में बांटना भी शुरू कर दिया है। राहुल गांधी का शंकर देव की जन्मस्थली पर जाने का फैसला सही है, लेकिन समय उचित नहीं है। शंकर देव की जन्मस्थली पर जाने के लिए उन्हें यह दिन नहीं चुनना चाहिए था।

असम के मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता हेमंत विश्व शर्मा ने राहुल गांधी से आग्रह किया था कि वह उस दिन असम के वैष्णव संत शंकर देव के जन्म स्थान पर न जाए। उनका कहना है कि राहुल गांधी भगवान श्री राम और वैष्णव संप्रदाय के संत शंकर देव में प्रतिस्पर्धा करवाने की कोशिश कर रहे हैं, जो उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि श्री राम जन्मभूमि में प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम संपन्न हो जाने के बाद वह शंकर देव के जन्म स्थान पर जाए, तो ठीक रहेगा। हेमंत विश्व शर्मा ने उन्हें मोरीगांव, जागी रोड और नेल्ली जैसे संवेदनशील रास्तों से भी परहेज करने का सुझाव दिया है।

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