इतिहास

Akbar Mother Read Ramayana : सम्राट अकबर की मां पढ़ती थी रामायण, दोहा में सुरक्षित है वह कॉपी

मुगल काल में भगवान राम का प्रभाव शहंशाह अकबर के ऊपर देखा जा सकता है। अकबर की मां हमीदा बानो बेगम के मरियम महल में पिलर पर भगवान राम का दरबार देखा जा सकता है। सम्राट अकबर और उनकी मां हमीदा बानो बेगम श्री राम राम कथा के प्रति आदर भाव से उत्प्रोत थे। अकबर और हमीदा बानो ने रामायण का सचित्र अनुवाद करवाया जो अलग-अलग पुस्तकालय में आज भी सुरक्षित है। दोहा के इस्लामी कला संग्रहालय में आज भी वह रामायण है जिसका फारसी में अनुवाद कराया गया था। सम्राट अकबर के आदेश पर ऐसा ही किया गया था यह मध्यकालीन भारत में अलग-अलग संस्कृतियों के मिलन का एक बेहतरीन उदाहरण है।

यह काम अकबर के कहने पर हुआ था और उनका अपना एक खूबसूरत हस्तलेख भी था। रामायण इतनी पसंद आई की दरबार के कई रईसों ने भी अपनी खुद की प्रतियां बनवाएं। इस रामायण में 56 बड़े चित्र थे। इसकी शुरुआत एक खूबसूरत फूल और सोने के नाजुक चित्रों से सजी हुई है। वाल्मीकि ने रामायण की रचना कैसे की इसकी एक फ्रेमिंग है। पांडुलिपि के बाहरी किनारो को काट दिया गया है। साल 1990 के दशक तक लगभग अज्ञात यह रामायण मुगल प्रायोजित संस्कृत ग्रंथों के इतिहास में एक मील का पत्थर है। अकबर के दरबार में विभिन्न धर्म और क्षेत्र से विद्वान और कलाकार जुटते थे।

साल 2000 में कतर के शाही शख्स शेख सऊद अल थानी ने खरीदने से पहले, हमीदा बानो की रामायण कई हाथों से गुजरी। शेख सऊद अल थानी ने इससे अलग किए गए अधिकांश चित्रों को भी प्राप्त किया, ताकि इसे पूरा फिर से बनाया जा सके। अकबर के शासनकाल में तूतीनामा के अलावा रामायण और महाभारत का फारसी में अनुवाद किया गया। अनुवाद में राम तो राम ही रहते हैं, लेकिन दशरथ जसवंत बन जाते हैं। अगस्त्य का नाम बदल जाता है। अनुवाद में मेल बिठाने की कोशिश भी की गई है। अशोक वाटिका को महल के मंडप के रूप में दिखाया गया है। और लाल झालर वाले गहने कलाकार की अपनी रचनात्मक दर्शाते हैं।

चित्र राम के दिव्य राज पर जोर देते हैं। मुगल दरबार के लिए विशेष रूचि का विषय रामायण रहा। ‘दोहा रामायण’ 16वीं सदी के उत्तर भारत की भाषा, कला और साहित्य की झलक है। इससे पता चलता है कि कैसे मुगलों को रामायण और शासन करने के दैवीय अधिकार की धारणाओं में विशेष रूचि थी। महाकाव्य में हमीदा बानो के विशेष रुचि उल्लेखनीय है, और कहा जाता है कि वह सीता द्वारा दिखाए गए धैर्य और कठिनाई से काफी प्रभावित थी। साल 1990 के दशक तक का अज्ञात यह रामायण मुगल प्रायोजित संस्कृत ग्रंथों के इतिहास में एक मील का पत्थर है।

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