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Ayodhya Ram Mandir : नेहरू से राहुल तक, गांधी परिवार की हर पीढ़ी ने काबुल जाकर बाबर को श्रद्धांजलि दी लेकिन राम जन्मभूमि कोई नहीं गया

कांग्रेस पार्टी ने राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम का निमंत्रण ठुकरा दिया। पार्टी की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी, वर्तमान अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधिर रंजन चौधरी को श्री राम जन्मभूमि तीर्थ न्यायाधीश की तरफ से निमंत्रण मिला था। कांग्रेस के इस कदम की चौतरफा आलोचना हुई। यहां तक की उसके कई नेताओं ने इसे हिंदू और सनातन विरोधी कदम बताते हुए पार्टी छोड़ दी।आज जब अयोध्या में पूरी दुनिया के राम भक्त उमड रहे हैं तो लोग याद दिला रहे हैं कि गांधी परिवार का कोई सदस्य अयोध्या में राम जन्मभूमि के दर्शन करने कभी नहीं गया। बल्कि मुगल आक्रांता बाबर के मकबरे के आगे झुकने के लिए अफगानिस्तान जरूर पहुंच गए। भगवान राम से हमेशा दूरी बनाए रखने वाले गांधी परिवार की अब तक की पीढ़ियां राम जन्मभूमि को तहस-नहस कर मस्जिद बनाने वाले आक्रांता बाबर के मकबरे के आगे नत
मस्तक हुई।

देश के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में विज्ञान के प्रोफेसर आनंद रंगनाथन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर एक पोस्ट किया। उन्होंने कहा कि राम जन्म स्थान पर कभी नहीं जाने वाले नेहरू गांधी, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, और राहुल गांधी बाबर के मकबरे के आगे सर झुका चुके हैं। राहुल गांधी को छोड़ दे तो गांधी परिवार के बाकी तीनों सदस्य भारत के पीएम रह चुके हैं। लेकिन उन्हें भारत की आत्मा जिनमें बस्ती है उसे राम से उनका कोई राग नहीं। लेकिन भारत की आत्मा को रंगने वाले बाबर के प्रति ऐसा प्रेम की हर पीढ़ी अफगानिस्तान पहुंच गई। इतना ही नहीं पिछले पीएम मनमोहन सिंह भी यही कर चुके हैं।

नेहरू- गांधी परिवार और कांग्रेस का कहना है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, इसलिए धर्म के काम में सरकार को शामिल नहीं होना चाहिए। वह पीएम नरेंद्र मोदी को संविधान की भावना के खिलाफ जाने का आरोप लगाते हैं। लेकिन सवाल यह है कि आखिर बाबर कौन था, उसके मकबरे पर जाने का क्या मतलब है। आनंद रंगनाथन बाबर का एक बयान कोट करते हैं जिससे यह पता चलता है कि बाबर कितना धार्मिक था या धर्मनिरपेक्ष आनंद बाबर का बयान लिखते हैं, “मैं इस्लाम के खातिर एक घुमक्कड़ बन गया और काफिरों और हिंदुओं से लड़ता रहा। मैंने इस्लाम के लिए शहीद होने तक का संकल्प ले रखा था, लेकिन अल्लाह का शुक्र है कि मैं गाजी बन गया।” सोचिए जो खुद को धर्मनिरपेक्ष बताते हुए धर्म के सार्वजनिक प्रदर्शन से दूरी बनाने का दंभ भरता हो वह कभी बाबर के मकबरे पर जाएगा।

दिग्गज कांग्रेसी और पूर्व केंद्रीय मंत्री नटवर सिंह ने अपनी किताब ’हर्ट टू हर्ट’ में इंदिरा गांधी के काबुल दौरे की जिक्र करते हैं। वह बाबर के मकबरे पर इंदिरा गांधी के साथ थे। वह लिखते हैं, सीभारत के पीएम वहां खड़े थे, सिर थोड़ा झुका कर उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे थे। मैं उससे कुछ फुट पीछे खड़ा था। यह संजोने, स्मरण करने और याद रखने का क्षण था। उस झण सादियां विलेन और धुंधली होती प्रतीत हो रही थी।’ वह आगे लिखते हैं, ‘1 मिनट के बाद वह पीछे हटी और बोली हमने इतिहास से अपना नाता तोड़ लिया है।

कांग्रेसियों की सोच समझिए। नटवर सिंह बाबर के मकबरे पर पहुंचकर गदगद है। वह उस झण को स्मरणीय बता रहे हैं। उधर इंदिरा गांधी यह दावा करके दुख जाता रही है भारत ने अपने इतिहास से कट गया है। गांधी ही नहीं पूरे गांधी परिवार कांग्रेस की सोच का आधार ही यही है। यही कांग्रेस सरकार की नीतियों के सूत्र वाक्य रहे, अक्रांताओं का महिमा मंडल और भारतीयता का खंडन कई जानकार और विश्लेषक कहते हैं कि मुगलों और अंग्रेजों ने गुलाम भारत में हिंदुओं का जो अहित किया वह आजादी के बाद कांग्रेस शासन में भी जारी रहा।

राम मंदिर के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का ही मामला ले लीजिए ।दशकों से सुप्रीम कोर्ट राम मंदिर के मुकदमे पर चुप रहा और जब तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने समयबद्ध सुनवाई का फैसला किया तो कांग्रेस पार्टी उनके खिलाफ महाभियोग लाने की तैयारी करने लगे। आखिरकार जस्टिस दीपक मिश्रा को चुप्पी साधनी पड़ी। फिर जस्टिस रंजन को गोगोई देश के चीफ जस्टिस बने तब राम मंदिर केस के नियमित सुनवाई हुई और साल 2019 में 9 नवंबर को फैसला आया। ध्यान रहे कि जस्टिस रंजन गोगोई के खिलाफ तभी एक महिला ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगा दिया।

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