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How Dwarka Submerged : कैसे समंदर में डूबी श्री कृष्ण की द्वारका नगरी, एलियन अटैक या कुछ और….

पीएम नरेंद्र मोदी ने गुजरात में समंदर में डूबी प्राचीन द्वारका नगरी के दर्शन किए। ड्राइविंग हेलमेट पहने पीएम नरेंद्र मोदी, नौसेना के गोताखोरों की सहायता से समंदर के अंदर गए और पूजा अर्चना भी की। द्वारिका नगरी, हिंदू धर्म के चार सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों या चार धाम में से एक है। पौराणिक मान्यता है कि प्राचीन द्वारिका नगरी खुद भगवान श्री कृष्ण ने बसाई थी। जो एक समय के बाद समंदर में समा गई। द्वारकाधीश मंदिर के पुजारी मुरली ठाकुर कहते हैं कि द्वारिका 84 किलोमीटर में फैली दुर्गनुमा सिटी थी, जो गोमती नदी और अरब सागर के संगम के तट पर बसी थी।

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प्राचीन द्वारिका नगरी, कुछ दशक पहले तक काल्पनिक मानी जाती थी। पहली बार भारतीय वायु सेना के पायलटों की नजर, द्वारका नगरी के समुद्री अवशेष पर पड़ी, जो समुद्र में बहुत नीचे से उड़ान भर रहे थे। साल 1970 के जामनगर के गजेटियर में इस बात का उल्लेख मिलता है।

आर्कियोलॉजिस्ट कहते हैं कि बीसवीं सदी के मध्य में पहली बार द्वारिका नगरी को ढूंढने की कोशिश हुई। साल 1960 के दशक में पहली बार डेक्कन कॉलेज पुणे ने यहां खुदाई की। साल 1979 में आकियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया ने एक और खुदाई की। जिसमें कई तरह के पात्र घड़े, मिट्टी के बर्तनों के टुकड़े और कई दूसरे अवशेष मिले। जिससे एक उम्मीद जगी।

पुरातत्व विभाग के अनुसार इस खुदाई में 500 से ज्यादा चीज मिली। जिनकी डेटिंग से पता चला किया 2000 साल से अधिक पुरानी है। पानी के अंदर पत्थर के बड़े-बड़े कॉलम अवशेष जैसी चीजें मिली।

साल 2007 में पहली बार द्वारिका नगरी में बड़े पैमाने पर खुदाई की गई। 200 मीटर के एरिया में खुदाई शुरू हुई। फिर 50 मीटर का एरिया ऐसा मिला, जहां ज्यादा चीजें मिल रही थी। इसके बाद दो नॉटिकल मील का हाइड्रोग्राफिक सर्वे किया गया, जिससे पता चला कि उस खास जगह नदी का प्रवाह लगातार बदल रहा है। इसके बाद उस जगह की ग्रेडिंग की गई और बाकायदा एक-एक ग्रेड की खुदाई और सर्वे शुरू हुआ। इस खुदाई में पिलर , सिक्के, पात्र, बड़े-बड़े कॉलम जैसी चीज मिली। तमाम पत्थरों पर समुद्री घास जम गई थी। जब उन्हें हटाया गया तो वास्तविक आकार का पता चला।

द्वारिका नगरी की खुदाई में कई बड़े-बड़े लंगर पाए गए। जिससे यह साफ हो गया कि द्वारिका नगरी के ऐतिहासिक बंदरगाह शहर था। कुछ आर्कियोलॉजिस्ट कहते हैं की संस्कृत में द्वारका नगरी शब्द का मतलब द्वार या दरवाजा होता है। द्वारिका की खुदाई में जैसी चीज मिली है, उससे प्रतीत होता है कि यह प्राचीन बंदरगाह शहर भारत आने वाले विदेशी नागरिकों के लिए कभी दरवाजे की तरह था। खासकर 15वीं से 18वीं शताब्दी के बीच अरब देशों से व्यापारिक संपर्क में अहम भूमिका निभाई होगी।

राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान के पूर्व चीफ साइंटिस्ट डॉक्टर राजीव निगम बीबीसी ट्रैवल से बातचीत में कहते हैं कि जब यह साफ हो गया कि समंदर के नीचे शहर का अवशेष है तो हमने यह पता लगाने की प्रयास किया कि आखिर यह डूबा कैसे होगा। पिछले 15,000 साल के दौरान समुद्र के स्तर के पड़ताल की गई। इससे पता चला कि 15,000 साल पहले समुद्र का स्टार 100 मीटर नीचे हुआ करता था। 7000 साल पहले समुद्र का जलस्तर बढ़ना शुरू हुआ और करीब 3500 साल पहले समुद्र का स्तर ऐसे लेवल पर पहुंच गया, जहां अभी है और ठीक इसी समय द्वारका नगरी डूबी होगी।

द्वारिका नगरी डूबने के पीछे कई पौराणिक मान्यता भी प्रचलित है। पहली मान्यता गांधारी के श्राप से जुड़ी है।कहा जाता है कि जब महाभारत के युद्ध में पांडवों की जीत हुई और कौरव खत्म हो गया तब गांधारी ने श्री कृष्ण को महाभारत का दोषी ठहराते हुए श्राप दिया था कि उनके कुल का नाश हो जाएगा। और यही श्राप द्वारिका नगरी डूबने की वजह बनी।

महाभारत के 23वें और 24 वें श्लोक के अनुसार जिस दिन श्री कृष्णा 125 साल की आयु के बाद आध्यात्मिक दुनिया में शामिल होने के लिए पृथ्वी छोड़कर चले गए, उसी दिन द्वारका नगरी अरब सागर में डूब गई थी। यही वह वक्त था जब कलयुग की शुरुआत हुई थी।

द्वारिका नगरी के समंदर में डूबने की एक एलियन थ्योरी भी एलियन सिद्धांत में विश्वास रखने वाले कुछ वैज्ञानिक ऐसा भी मानते हैं कि प्राचीन द्वारिका नगरी एक उड़ने वाली मशीन या यूएफओ द्वारा हमला किया गया। यह लड़ाई तकनीक और शक्तिशाली हथियारों के साथ लड़ी गई थी। एलियन स्पीशीप में ऊर्जा हथियारों का इस्तेमाल किया और शहर पर हमला किया, जो बिजली गिरने जैसा प्रतीत हो रहा था। यह हमला इतना विनाशकारी था कि हमले के बाद शहर का अधिकतर हिस्सा खंडहर में बदल गया। हालांकि इस बात की वैज्ञानिक पुष्टि नहीं हो पाई है।

आर्कियोलॉजिस्ट और समुद्र वैज्ञानिक प्राचीन द्वारिका नगरी के और राज जानने की कोशिश में लगे हुए हैं। वैज्ञानिक अब प्राचीन शहर के दीवारों की नींव की तलाश के लिए पानी के नीचे खुदाई की तैयारी कर रहे हैं, ताकि इस बात का सही-सही पता लगाया जा सके की अवशेष कितने पुराने हैं।

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