Padma Awards Announced : पद्म पुरस्कारों की घोषणा, सूची में ज्यादातर अनसंग हीरो, पहली महिला महावत भी इनमें शामिल
इस साल के पद्म अवार्ड की घोषणा कर दी गयी है। इस लिस्ट में ज्यादातर अनसंग हीरोज शामिल है। यह वे लोग हैं जो साधारण जीवन जी कर समाज में बड़ा योगदान कर रहे हैं और सरकार ने उनके इस योगदान को पहचान दी है। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या के अवसर पर पद्म अवार्ड 2024 की घोषणा की गई। इस साल 110 लोगों को पद्मश्री पुरस्कार दिया गया है। पद्म पुरस्कारों के लिए नामांकन की अंतिम तिथि 15 सितंबर, 2023 थी। इस बार के पद्मश्री पुरस्कार विजेताओं की सूची में यह भी शामिल है।
. नेपाल चंद्र सूत्रधार- पुरुलिया शैली के नृत्य और सदियों पुराने छांऊ के मुखौटे बनाने की अंतिम और वरिष्ठतम विशेषज्ञों में से एक।
. बाबूराम यादव- पीतल शिल्पकार पिछले 6 दशकों से विश्व स्तर पर जटिल पीतल मरोरी शिल्प का नेतृत्व कर रहे हैं।
. दसारी कोंडप्पा- अंतिम बुरा वीणा वादकों में से एक, इन्होंने अपना जीवन स्वदेशी कला को समर्पित कर दिया।
. जानकी लाल- तीसरी पीढ़ी के कलाकार जो 6 दशकों से ज्यादा समय से लुप्त होती बहरूपिया कला में महारत हासिल कर रहे हैं।
. गद्दाम सम्मैया- 5 दशकों से ज्यादा समय से यझगानम प्रदर्शन के माध्यम से सामाजिक मुद्दों पर प्रकाश डाला।
. माचिहान सासा – मास्टर शिल्पकार जिन्होंने लोगपी की मिट्टी के बर्तनों की प्राचीन मणिपुरी परंपरा को बढ़ावा दिया और संरक्षित किया है।
. भागवत पधान- सब्दा नृत्य नृत्य के दायरे को व्यापक मंचों तक विस्तारित किया और कला में विविध समूहो को प्रशिक्षित किया।
. सनातन रूद्र पाल- मूर्तिकार 5 दशकों से ज्यादा समय से पारंपरिक साबेकी दुर्गा मूर्तियों को तैयार करने के लिए जाने जाते हैं।
. बदरप्पन एम- 87 साल वल्ली ओयिल कुम्मी नृत्य गुरु, परंपरा से हटकर महिलाओं को भी प्रशिक्षित करते हैं।
. जॉर्डन लेप्चा- सिक्किम की पारंपरिक लेप्चा टोपियों को संरक्षित करने वाले बांस शिल्पकार।
. गोपीनाथ स्वैन – 9 दशकों से ज्यादा समय से कृष्ण लीला का प्रदर्शन कर रहे हैं 100 वर्षीय दिग्गज।
. स्मृति रेखा चकमा – बुनकर पर्यावरण अनुकूल सब्जियों से रंगे सूती धागों को पारंपरिक डिजाइनों में बदल रहे हैं।
. ओम प्रकाश शर्मा – 200 साल पुराने मालवा क्षेत्र के पारंपरिक नृत्य नाटक ‘माच’ का 7 दसकों से अधिक समय तक प्रचार किया।
. नारायण ई.पी – थेय्यम के पारंपरिक कला रूप को बढ़ावा देने के लिए 6 दशक समर्पित कीए।
. उमा महेश्वरी डी – पहली महिला हरि कथा प्रतिपादक जिन्होंने विश्व स्तर पर विभिन्न रागों में प्रदर्शन किया है।
. बालकृष्णन सदनम पुथिया वीटिल – पिछले 6 दशकों से कल्लुवाझी कथकली के लिए वैश्विक प्रशंसा अर्जित कर रहे हैं।
. अशोक कुमार विश्वास – लोक चित्रकार जिन्होंने मौर्य युग की टिकुली कला को पुनर्जीवित किया, हजारों डिजाइन तैयार किए और 8 हजार महिलाओं को प्रशिक्षित किया।
. रतन कहार – अपनी रचना ‘बोरो लोकेर बिटी लो’ से लोगों का ध्यान खींचा।
. शांति देवी पासवान और शिवन पासवान – गोदना चित्रकारों की जोड़ी, जो सामाजिक विषमता पर काबू पाकर विश्व स्तर पर मधुबनी पेंटिंग में प्रमुख चेहरा बन गए।
. यज्दी मानोकशा इटालिया – सिकल सेल एनीमिया में विशेषज्ञ माइक्रोबायोलॉजिस्ट।
. उदय विश्वनाथ देशपांडे – अंतर्राष्ट्रीय मल्लखंभ कोच।
. प्रेमा धनराज – प्लास्टिक सर्जन और सामाजिक कार्यकर्ता।
. सर्वेश्वर बसूमतारी – चिराग के आदिवासी किसान।
. सोमन्ना – मैसुरू के आदिवासी कल्याण कार्यकर्ता।
. यानूंगा जमोह लेगो – अरुणाचल प्रदेश के हर्बल चिकित्सा विशेषज्ञ।
. के चेल्लाम्मल – दक्षिण अंडमान के जैविक किसान ने सफलता पूर्वक 10 एकड़ का जैविक फॉर्म विकसित किया।
. दुखु माझी – पुरुलिया के सिंदरी गांव के आदिवासी पर्यावरणविद्।
. हेमचंद माझी – नारायणपुर के एक पारंपरिक औषधीय चिकित्सक, जो 5 दशकों से ज्यादा समय से ग्रामीणों को सस्ती स्वास्थ्य सेवा प्रदान कर रहे हैं, उन्होंने 15 साल की उम्र से जरूरतमंद की सेवा करना शुरू कर दिया था।
. संगथकिमा – आइजोल के सामाजिक कार्यकर्ता, जो मिजोरम का सबसे बड़ा अनाथालय ‘थुतक नुनपुइटु टीम’ चला रहे हैं।
. सत्यनारायण बेलेरी – कासरगोड के चावल किसान जो 650 से ज्यादा पारंपरिक चावल किस्म को संरक्षित करके धान की फसल के संरक्षक के रूप में जाने जाते हैं।
. गुरविंदर सिंह – सिरसा के दिव्यांग सामाजिक कार्यकर्ता, जिन्होंने बेघर, निराश्रितों, महिलाओं, अनाथ और दिव्यांगजनों की भलाई के लिए काम किया।
. चार्मी मुर्मू – सरायकेला खरसावां से आदिवासी पर्यावरण विद् और महिला सशक्तिकरण चैंपियन।
. जागेश्वर यादव – जयपुर के आदिवासी कल्याण कार्यकर्ता, जिन्होंने हाशिए
पर रहने वाले बिरहोर और पहाड़ी कोरबा लोगों के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।
. पार्वती बरुआ – भारत की पहली मादा हाथी महावत है, जिन्होंने पारंपरिक रूप से पुरुष प्रधान क्षेत्र में अपने लिए जगह बनाने के लिए रूढ़िवादिता पर जीत हासिल की।