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Gold Purchase Scheme Vs Fixed Deposit : जानिए कहां निवेश करना ज्यादा फायदेमंद और कितना बनेगा पैसा

भारत एक ऐसा देश है जहां लोग सोना खरीदने को सबसे सुरक्षित इन्वेस्टमेंट मानते हैं। इसमें अगर कोई सबसे अधिक इनवेस्ट करता है तो वह है ग्रामीण इलाको वाले या कम इनकम वाले लोग। इन्वेस्ट करने के लिए ऑप्शन काफी सारे हैं। जैसे म्युचुअल फंड, सोना, फिक्सड डिपाजिट, सेविंग्स अकाउंट, आदि शामिल है। जनता के मन में यह अक्सर सवाल आता है कि उन्हें इन्वेस्ट करने के लिए गोल्ड की खरीद योजनाओं की ओर जाना चाहिए या एफडी का ऑप्शन चुनना चाहिए।

हाल ही में लोगों ने अपनी सेविंग्स को इन्वेस्ट करने के लिए गोल्ड खरीदना ज्यादा शुरू कर दिया है। गोल्ड की खरीद योजनाओं में निवेश करने के लिए पहले उनकी बारीकियों को समझना और छानबीन करना काफी जरूरी है।

फिक्स्ड डिपॉजिट का मतलब है वह इन्वेस्टमेंट ऑप्शन जो मैच्योरिटी होने के बाद निश्चित ब्याज दर की गारंटी देता है। जनता इसे किसी भी निजी या सरकारी बैंक किया एनबीएफसी में खोल सकती है।

जनता अपने फिक्स डिपॉजिट बैंक को वित्तीय संस्थानों और निगमों के साथ करवा सकते हैं जो अलग-अलग ब्याज दर और अवधियों का ऑप्शन देते हैं। यह कम जोखिम वाले और विश्वास रखने लायक इंटरेस्ट है, जो मैच्योरिटी पर ब्याज के साथ एक सुनिश्चित राशि देते हैं, विशेष रूप से वरिष्ठ नागरिकों के लिए क्योंकि उन्हें ज्यादा ब्याज दरें मिलती है, जिससे उन्हें उनके खर्चों को पूरा करने में मदद मिलती है।

एफडी रिटर्न तो डिपॉजिट के समय या यह कहे अवधि पर निर्भर करता है। बचत खाते पर जहां ब्याज दर 4% होती है वहीं प्रचलित ब्याज दरें इससे ज्यादा मतलब 5% से 7% तक की होती है। एफडी पर ब्याज पर टैक्स देना होता है, लोगों को एक एक्रुअल बेसिक आधार पर अन्य स्रोतों से आए हैडिंग के तहत कर का भुगतान करना पड़ता है।

सोना परचेज स्कीम यानी जीपीएस हर महीने लोगों को पैसे डिपॉजिट करने से भविष्य में गोल्ड खरीदने की इजाजत देती है। फिलहाल कोई भी संस्था इससे रेगुलेट नहीं कर रही, इसलिए पॉपुलर ज्वेलरी हाउसेस जो ऐसी योजनाएं चलाते हैं उन सबकी मैच्योरिटी पर रिटर्न अलग-अलग होते हैं।

मैच्योरिटी पर खरीद के समय दर में किसी भी उतार चढ़ाव को मैनेज किया जा सकता है। उदाहरण के लिए अगर जीपीएस की शुरुआत में गोल्ड की कीमत 5,500 रुपए पर ग्राम है और मैच्योरिटी पर ₹6,000 पर ग्राम है, तो इन्वेस्ट 5,500 रुपए की शुरुआती दर पर खरीद सकता है। इससे इन्वेस्टर एक फिक्स्ड कीमत पर ज्यादा गोल्ड रख सकता है।

क्योंकि जीपीएस एक एसेट परचेस इन्वेस्टमेंट है और भुगतान नकद में नहीं मिलता इसलिए इस पर टैक्स नहीं भरा जाता। जबकि अनुसूची एएल में आभूषणों की रिपोर्ट करने की जरूरत है।

इन्वेस्टर को एक्स्ट्रा बेनिफिट भी मिलते हैं क्योंकि ज्वेलरी पर मेकिंग चार्ज माफ कर दिया जाता है या छूट दी जाती है। साथ ही एक महीने की किश्त भी दी जाती है। सोना की कीमत चाहे कितना भी कम हो या कितना भी ज्यादा हो भारत में गोल्ड हर त्योहार से लेकर शादी ब्याह और खुशी के अवसर पर खरीदा जाता है।

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