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Karpoori Thakur Bharat Ratna : बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मिलेगा भारत रत्न, PM मोदी की बड़ी घोषणा

कर्पूरी ठाकुर के 100वी जयंती से एक दिन पहले भारत रत्न देने की केंद्र सरकार ने घोषणा की है। इसे लेकर परिवार में खुशी का माहौल है।

कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा से देश की पिछड़ी जातियों के एक नायक को पहली बार देश का सर्वोच्च सम्मान मिला है। इसके पहले के. कामराज और एमजी रामचंद्रन को यह सम्मान मिला है। यह दोनों पिछड़ी जातियों से थे परंतु तमिलनाडु में यह जातीय हर तरह से साधन संपन्न है। ऐसे में हिंदी पट्टी के किसी पिछड़े नेता कोई सम्मान से नवाजा जाना यह बहुत बड़ी बात है। जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में आए पिछड़ी जातियां अपने कई नायकों के लिए भारत रत्न की मांग करती रही हैं। दलितों में से बाबा साहेब अंबेडकर को यह सम्मान मरणोपरांत 1990 में मिला था। अब तक जिन 48 नायकों को यह सम्मान मिला है उनमें से अधिकतर सवर्ण जाति से रहे हैं। अब तक कुल 6 प्रधानमंत्री को भी यह सम्मान मिला है।

पीएम जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी को यह सम्मान पद में रहते हुए मिला जबकि लाल बहादुर शास्त्री, राजीव गांधी को मरणोपरांत और मोरारजी देसाई तथा अटल बिहारी वाजपेई को पद से हटने के बाद। अधिकांश हस्तियों को यह सम्मान उनकी मृत्यु के बाद मिला। कर्पूरी ठाकुर की मृत्यु 1988 में हुई थी और मृत्यु के 36 साल बाद उन्हें यह सम्मान मिला। कर्पूरी ठाकुर के बेटे और जदयू से राज्यसभा सांसद रामनाथ ठाकुर कहते हैं की मृत्यु के 36 साल बाद उनके पिता कर्पूरी जी को देश का यह सर्वोच्च सम्मान मिला है। यह खुशी की बात है सभी दलों ने कर्पूरी जी के सामाजिक न्याय पर दावा किया है। और सामाजिक न्याय के पुरोधा को सब ने भूलाया।

पिछड़ो के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कि अब यह छवि बन गई है कि आने वाले वक्त में जातीय गोलबंदी वाले पिछड़े नेता या तो भाजपा में समा जाएंगे अथवा वे राजनीति से गायब हो जाएंगे। नीतीश कुमार तो मांग करते रह गए, बीजेपी ने उन्हें भारत रत्न दे भी दिया। अब नीतीश लालू आदि पिछड़ी जातियों के नेता किस आधार पर अपने वोट पुख्ता करेंगे। उनका आखिरी हथियार भी हाथ से निकल गया है। 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव कर नरेंद्र मोदी ने मंडल दलों को निरा अकेला कर दिया है। प्राण प्रतिष्ठा समारोह में आसन पर पिछड़ी जाति के लोगों को बिठाकर मोदी ने अपने कमंडल में मंगल को समाहित कर लिया है।

कर्पूरी ठाकुर पिछड़ी जातियों के वे नायक थे जिन्होंने अपनी सादगी ईमानदारी और जिजीविषा से राजनीति में कैसे हिलोर पैदा की जिससे हमारे संसदीय लोकतंत्र को नया आयाम मिला। उनके पहले तक कोई भी पिछड़ा नेतृत्व हिंदी पट्टी में इतने ऊंचे पद तक नहीं पहुंच सका था। कर्पूरी ठाकुर तो पिछड़ों में भी पीछे थे। वह नाई जाती से थे। उस समय यादव, कोईरी, कुर्मी ,लोध काछी आदि किसान जातियां इंटरमीडिएट कास्ट अर्थात मध्यवर्ती जातियां कहलाती थी। तब भी नाई पिछड़ों में थे। उनके पास जमीन नहीं होती थी और एक तरह से यह पेशेवर जाति थी।वह किसान जाति की प्रजा के तौर पर अपने जाते थे। फसल पकने पर किसान ने जो दे दिया, वही उनका हुआ बाकी पूरा साल सिर्फ इन जोत वाले किसानों की टहल करनी पड़ती थी।

इस तरह की जाति में जन्म लेकर भी भारतीय राजनीति में कर्पूरी ठाकुर ने एक बड़ा मुकाम हासिल किया। वह भी उस समय जब बिहार में सवर्ण कहीं जाने वाली जातियों का आधिपत्य था। कर्पूरी ठाकुर के 100 साल पूरे होने पर उनको यह सम्मान मिलना बिहार ही नहीं पूरे देश के लिए गौरव की बात है। 24 जनवरी 1924 को पैदा हुए कर्पूरी ठाकुर मैट्रिक में पढ़ते हुए स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे।1942 के क्विट इंडिया आंदोलन के दौरान उन्होंने वे 2 साल जेल में भी काटे। उनका झुकाव समाजवाद की तरफ था। वह आचार्य नरेंद्र देव के साथ भी रहे। बाद में वे डॉ. राम मनोहर लोहिया के साथ चले गए। उस समय राम सेवक यादव और मधु लिमए लोहिया जी के दो शिष्य बिहार की समाजवादी राजनीति में सिरमौर थे।कर्पूरी ठाकुर उनके साथ रहे।

1980 के दशक में दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहने के दौर में उन्होंने पिछड़ी जातियों को मुख्य धारा में लाने के लिए बहुत काम किया। 1978 में मुंगेरीलाल आयोग की सिफारिश पर उन्होंने प्रदेश में पिछड़ी जातियों के लिए सरकारी नौकरियों में 12% आरक्षण की व्यवस्था की। उन्होंने 79 पिछड़ी जातियों को इस सूची में रखा। इसके तहत पिछड़ी जातियों को चार प्रतिशत और अति पिछड़ी जातियों को 8% के दायरे में रखा “अधिकार चाहो तो लड़ना सीखो पग पग पर अडना सीखो जीना है तो मरना सीखो।” उनका नारा था, “अधिकार चाहो तो लड़ना सीखो पग पग पर अडना सीखो जीना है तो मरना सीखो। हिंदी भाषा के प्रचार, प्रसार के लिए सदा लगे रहे। उनके विचारधारा के केंद्र में थी, पिछड़ी जातियां। इसलिए वे सदैव इनको एक करने में जुटे रहे। उन्होंने किसानों की स्थिति सुधारने के लिए सीमांत किसानों के हित की चिंता सदा रही।

आजीवन पिछड़ों के लिए लड़ने वाले इस जन नायक के वसूलों की परवाह उनके किसी शिष्य ने नहीं की। लालू यादव, रामविलास पासवान, नीतीश कुमार आदि किसी नेता ने उनकी सादगी और पिछड़ों के हित के लिए सतत संघर्ष की राजनीति किसी ने नहीं कि। यह सब मौका परस्त रहे। उनके शिष्यों ने सदा पिछड़ों की गोलबंदी अपने निजी हितों के लिए की दो बार मुख्यमंत्री और एक बार उप मुख्यमंत्री रहते हुए भी कर्पूरी ठाकुर ने कोई निजी संपत्ति नहीं बनाई। यहां तक कि उनकी मृत्यु के समय भी उनके पास कोई अपना मकान नहीं था। अपनी ईमानदारी के कारण जनता में उनकी ऐसी पैठ थी कि 1952 से लेकर उनकी मृत्यु तक कोई भी चुनाव नहीं हारे। मुख्यमंत्री रहने के दौरान भी उनके आवास के दरवाजे जनता के लिए सदैव खुले रहते थे।

कर्पूरी ठाकुर ने सीएम पद पर रहते हुए कभी भी अपने परिवार को कोई अनुचित लाभ नहीं पहुंचाया। उनके बारे में अनेक तरह के किस्से प्रचलित है। मतलब जब वह मुख्यमंत्री थे, तब उनके पिता को गांव के दबंगों ने दाढ़ी मूछ काटने को बुलाया। जब वह नहीं गए तो दबंगों के लठैत उनको मारने के लिए पहुंच गए। प्रशासन को जब पता चला तो आनन-फानन में कार्रवाई कर लाठैतों को दबोच लिया। सीएम को पता चला तो उन लठैतो को छुड़वा दिया। और कहा हर गरीब और कमजोर पिछड़े का बेटा मुख्यमंत्री नहीं होता, इसलिए इस मानसिकता को बदलना होगा। गरीब पिछड़े को मुख्य धारा में लाना होगा। उनके बारे में कहा जाता है कि जब वह मुख्यमंत्री थे तब उनके बहनोई उनके पास नौकरी मांगने गए। कर्पूरी ठाकुर ने अपने बहनोई को ₹50 दिए और कहा गांव जाकर अपना पुश्तैनी धंधा करो। जब तक हर पिछड़ा मुख्य धारा में नहीं आ पाएगा मैं सिर्फ अपने परिवार के लिए कुछ नहीं करूंगा।

बिहार के ऐसे जननायक को भारत रत्न देकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछड़ी जातियों के बीच अपनी वह साख बना ली है, कि पिछड़ी जातियों के लिए अब कोई भी नेता ऐसा नहीं जिसे वह मोदी से ज्यादा नंबर दें। यही कारण था, कि 22 जनवरी को रामलला के प्राण प्रतिष्ठा के दौरान पिछड़ी जाति के लोगों ने जो उत्साह दिखाया उससे सब नेता बाहर हो गए। सिर्फ मोदी ही मोदी दिख रहे थे। अपनी इस अखंड लोकप्रियता का सैलाब देखकर मोदी ने अगले रोज चौका मार दिया। कर्पूरी ठाकुर जीस नाई जाती से थे, उसकी आबादी बिहार में मात्र दो फ़ीसदी है। यह अति पिछड़ी जातियों में से उनकी आबादी 29% है। अभी तक इन जातियों को का वोट नीतीश की जातियों को मिलता था। भारतीय जनता पार्टी ने इस वोट बैंक में सेंध लगा दी है। 2024 की लोकसभा युद्ध की तैयारी में पीएम नरेंद्र मोदी का यह चौकस दांव है।

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