जिले के विभिन्न गांवों में रविवार को गोवर्द्धन पूजनोत्सव धूमधाम से मनाया गया। बता दें कि दिवाली की अगली सुबह गोवर्धन पूजा की जाती है। गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। इस तरह गौ सम्पूर्ण मानव जाति के लिए पूजनीय और आदरणीय है। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है। वहीं, गोवर्द्धन पर्वत के रूप में हरेक गांवों में भगवान श्रीकृष्ण की विधिवत पूजा-अर्चना की गई।
इस दौरान सोहराई पर्व के अवसर पर गौ माता की भी पूजा-अर्चना की गईं। जानकर बताते हैं कि हजारों साल पहले आज ही के दिन इंद्र के प्रकोप से ब्रजवासियों को बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने अपना अलौकिक अवतार दिखाते हुए गोवर्द्धन पर्वत को अपनी हाथ की तर्जनी अंगुली पर उठाकर इंद्र के घमंड को चूर-चूर किया था। तब से चली आ रही परंपरा के तहत गोवर्द्धन पूजा धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस अवसर पर गायों को नहला-धुलाकर खूब सजाया-संवारा गया। तत्पश्चात गाय की पूजा कर उनकी आरती भी उतारी गई।
बताया जाता है कि कृष्ण ने सात दिनों तक लगातार पर्वत को अपनी अंगूली पर उठाएं रखा। इतना समय बीत जाने के बाद उन्हें अहसास हुआ कि कृष्ण कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं। तब वे ब्रह्मा जी के पास गए। जहां उन्हें ज्ञात हुआ कि श्रीकृष्ण कोई और नहीं स्वयं श्रीहरि विष्णु के अवतार हैं। इसके बाद देवराज इन्द्र ने कृष्ण की पूजा की और उन्हें भोग लगाया। तब से गोवर्द्धन पूजा की परंपरा कायम है। मान्यता है कि इस दिन गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा करने से भगवान कृष्ण प्रसन्न होते हैं। source
